Wednesday, December 28, 2011

शायद पड़ गई है दरार दोस्तों के दिलों में ||

छा गई है अब ख़ामोशी -सी हमारी महफिलों में |
शायद  पड़  गई है दरार दोस्तों के दिलों में ||
 
लोग तो डूबा करते हैं अक्सर सागर के बीच ,
मगर हम तो डूब   गए हैं सागर के  साहिलों में |
 
किस से शिकवा करें कि वो काम न आये बुरे वक्त में ,
छोड़ गया साथ खुदा भी हमारा मुश्किलों  में |
 
दोस्त तो बहुत से है हमारे भी इस जहां में मगर ,
फिर भी तन्हा से रहते हैं दोस्तों के काफिलों में |
 
कोई गिला नहीं कि अदावत है जमाने को हमसे  ,
जब अपने ही हुए  है हमारे कातिलों में |
 
आवारा हो गए हैं हम भी इस आशिकी में पड़ कर ,
वरना  "नज़ील" हम भी गिने जाते थे काबिलों में ||


 

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