Thursday, December 22, 2011

ख़त खूं से लिखा होना |

अच्छा लगता है किसी का यूँ खफा होना |
जब रूठना फितरत नहीं, पर उनकी अदा होना ||
 
मुहब्बत होती है इक हसीं ज़ज्बा दो दिलों का ,
ज़रूरी नहीं इसके लिए ख़त खूं से लिखा होना |
 
करके वायदा उनसे खुद ही मुकर गए हम ,
तो जायज़ ही था उनका हमसे खफा होना |
 
यही अदा है उनकी मुहब्बत के इज़हार की ,
लबों पे तब्बसुम और  नज़रों का झुका होना |
 
अगर हैसियत ही नहीं कुछ पाने की हमारी ,तो ,
कहाँ की अक्लमंदी है हर हसीं शै पे फ़िदा होना |
 
"नज़ील" जिंदगी से भी अज़ीज़ है वो हमको ,
होगी हमारी रुसवाई उनका रुसवा होना ||

6 comments:

  1. वाह....!!
    क्‍या बात है.....
    दिल को छू लेने वाली गजल.....
    खासकर ये दो लाईनें,
    'मुहब्बत होती है इक हसीं ज़ज्बा दो दिलों का ,
    ज़रूरी नहीं इसके लिए ख़त खूं से लिखा होना |'

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  2. धन्यावाद अतुल जी ....हार्दिक आभार ...:)

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  3. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-737:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  4. शानदार गज़ल नजील साहब....
    सादर बधाई......

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  5. धन्यवाद दिलबाग जी ,हबीब जी ,अंजू जी ...... आपका हार्दिक आभार ..:)

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