Sunday, December 4, 2011

आज मुस्कुराए हैं तेरे लिए

चले जाने को मन करता था इस जहां से ,पर लौट आये हैं तेरे लिए,
मुद्दत हुई  है हंसी को खोये हुए, बस आज मुस्कुराए हैं तेरे लिए. 

जद्दोजहद में गुजरे है दिन और तेरे ख्यालों में रात गुजर जाए,
इन आँखों में हमने  बहुत हसीं ख़्वाब सजाए हैं तेरे लिए ,

बहुत मुश्किल होता है बैठना यारों की महफ़िल में अब तो ,
जो बातों- बातों में  हर पल हमको सताए  हैं तेरे  लिए .

जुर्रत कहा थी किसी की जो बात करे आँख मिला के हमसे ,
आज उनके सामने भी खड़े हैं हम, सर झुकाए तेरे लिए ,

डरे है अब दिल  कहीं  इनकार न कर दे  हमारी मुहब्बत को ,
अब तो बड़ी मुश्किल से हमने वालिदेन मनाए है तेरे लिए 

                         * * * * *

3 comments:

  1. डरे है अब दिल कहीं इनकार न कर दे हमारी मुहब्बत को ,
    अब तो बड़ी मुश्किल से हमने वालिदेन मनाए है तेरे लिए

    बहुत खूब
    ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, पहली ही रचना लाजवाब

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  2. धन्यावाद दिलबाग विर्क जी .....

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  3. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-722:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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